bokomslag Paraspar
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  • 208 sidor
  • 2018
हिन्दी भाषा का विमर्श और संघर्ष लम्बा है, लेकिन अभाग्यवश हमारा निपट वर्तमान पर आग्रह इतना इकहरा हो गया है कि उसकी परम्परा को भूल ही जाते हैं। एक युवा चिन्तनशील आलोचक ने विस्तार से इस विमर्श और संघर्ष के कई पहलू उजागर करने की कोशिश की है और कई विवादों का विवरण भी सटीक ढंग से दिया है। हम इस प्रयत्न को बहुत प्रासंगिक मानते हैं और इसलिए इस पुस्तक माला में सहर्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

  • Författare: Rajeev Ranjan Giri
  • Format: Inbunden
  • ISBN: 9788126730872
  • Språk: Engelska
  • Antal sidor: 208
  • Utgivningsdatum: 2018-01-01
  • Förlag: Rajkamal Prakashan Pvt. Ltd